पुरानी यादों से सजा आंगन : महाराजा अग्रसेन इंटर कॉलेज में 1992 बैच का आशीष एवं स्नेह मिलन समारोह

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पुरानी यादों से सजा आंगन : महाराजा अग्रसेन इंटर कॉलेज में 1992 बैच का आशीष एवं स्नेह मिलन समारोह

 

आगरा। बचपन के दोस्तों की हंसी, क्लासरूम की यादें और गुरुओं के आशीर्वाद से सजी सुबह, ऐसा दृश्य था शनिवार को महाराजा अग्रसेन इंटर कॉलेज, आगरा में, जहाँ बैच 1992 (गणित वर्ग) का आशीष एवं स्नेह मिलन समारोह पारिवारिक मेल-मिलाप के रूप में सम्पन्न हुआ। बरसों बाद अपने विद्यालय प्रांगण में लौटे छात्रों ने न सिर्फ़ अपने शिक्षकों का सम्मान किया, बल्कि पुराने दिनों की यादों में खोकर जीवन के सुनहरे पलों को फिर से जी लिया।

मुख्य अतिथि डॉ. मुकेश अग्रवाल, संयुक्त शिक्षा निदेशक, आगरा मण्डल ने विद्यार्थियों और शिक्षकों के बीच अटूट रिश्ते को शिक्षा की सबसे बड़ी धरोहर बताया। उन्होंने कहा कि ऐसे आयोजन गुरु-शिष्य परंपरा को नई ऊर्जा प्रदान करते हैं।

 

गुरुजनों का सम्मान और छात्रवृत्ति

समारोह में पूर्व छात्रों ने अपने सेवानिवृत्त शिक्षकों वाईपी गुप्ता, एके अग्रवाल, सुबोध कुमार जैन, एसके तिवारी, पूरन चंद, बीडी अग्रवाल, उमाशंकर गुप्ता और राजेश्वर अग्रवाल का शॉल ओढ़ाकर एवं स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मान किया।

वर्तमान में पूर्व छात्रों द्वारा कॉलेज के इंटरमीडिएट टॉपर को 11,000 रुपए और हाईस्कूल टॉपर को 5,100 रुपए की छात्रवृत्ति भी दी जा रही है।

 

पूर्व छात्रों की उपलब्धियाँ और संकल्प

बैच 1992 के कई छात्र आज समाज के विभिन्न क्षेत्रों में अपनी अलग पहचान बना चुके हैं। सुशील कुमार जैन और चंद्रकांत शर्मा आज प्रधानाचार्य हैं और शिक्षा जगत में सेवा दे रहे हैं। ललित कुमार सिंह और विपिन जैन इंजीनियरिंग क्षेत्र में सक्रिय हैं। प्रमोद चौहान चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं। वहीं मनीष मित्तल, अभिनव भार्गव, संजीव गुप्ता, जुगल किशोर, शिवांकर अमोल, मनीष अग्रवाल, अनूप गोयल, विकास बंसल, विशाल बंसल, मनोज सिंह, प्रदीप शर्मा, अनिल गुप्ता और विवेक अग्रवाल उद्योग और उद्यमिता जगत में अपनी पहचान बना चुके हैं।

समारोह के संयोजक विजय बंसल ने बताया कि सरकार द्वारा कॉलेज को दी जा रही एक करोड़ रुपए की अनुदान राशि में 25 प्रतिशत सहयोग बैच 1992 के छात्र मिलकर करेंगे। इसके साथ ही उन्होंने विद्यालय के जुड़ो द्वार निर्माण में भी योगदान देने का संकल्प लिया।

पारिवारिक मिलन में सभी अपने बच्चों और परिजनों को लेकर पहुँचे। कोई अपने बच्चों को पुराने क्लासरूम दिखा रहा था, तो कोई अपने गुरुओं से मिली सीख को याद कर भावुक हो रहा था।

चेहरों पर मुस्कान थी, लेकिन दिल में यह कसक भी थी कि बचपन के वे दिन लौटकर नहीं आएंगे, हाँ स्मृतियों में जरूर बार-बार जीए जा सकते हैं।