
‘जिंदगी दर्द है’ की ‘अनुभूति’ कर अंतिम ‘यात्रा’ पर निकल गया एक पथिक..
वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद डॉ. श्रीमती सत्या सक्सेना जी के निधन पर साहित्य जगत में छाई शोक की लहर
अनेक कवि-साहित्यकारों, पत्रकारों और शिक्षाविदों ने सोशल मीडिया पर व्यक्त की गहरी शोक संवेदना
आगरा। ‘अनुभूति’, ‘जिंदगी दर्द है’, ‘यात्रा’, ‘इंद्रधनुष’, ‘मृगतृष्णा’ और ‘ड्रीम ऑफ़ ए लेडी’ सहित सात पुस्तकों की रचनाकार आगरा की वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद डॉ. श्रीमती सत्या सक्सेना जी (उम्र 85 वर्ष) का निधन हो गया। यूँ लगा जैसे ‘जिंदगी दर्द है’ की ‘अनुभूति’ कर एक पथिक अंतिम ‘यात्रा’ पर निकल गया हो..
विगत चार महीने से गंभीर रूप से अस्वस्थ चल रहीं सत्या जी की तन मन धन से सेवा में जुटे उनके इकलौते पुत्री-दामाद सोनिया सभरवाल और संजय सभरवाल ने बताया कि उनकी माँ ने मंगलवार सुबह 5:30 बजे हीराबाग दयालबाग स्थित अपने निवास पर अंतिम साँस ली।
यह दुखद समाचार जैसे ही सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, आगरा सहित पूरे साहित्य जगत में शोक की लहर छा गई। आगरा और बाहर के अनेक कवि, साहित्यकारों, पत्रकारों और शिक्षाविदों ने फेसबुक और व्हाट्सएप के विभिन्न साहित्यिक समूहों में अपनी गहरी शोक संवेदना व्यक्त करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की।
*संत जैसी साहित्य साधिका*
*शांति के साथ हो गईं शांत..*
*वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. राजेंद्र मिलन* ने लिखा, ‘सत्या जी से बहुत घनिष्ठ सम्बन्ध रहे। आगरा में जब भी वे रहतीं घर पर एक काव्य गोष्ठी के लिए आमंत्रित कर लेतीं। उनका जाना बेहद दुखी समाचार है किंतु हम इस प्राकृतिक विधान में मूक खडे़ हैं.. कुछ कर भी तो नहीं सकते..’ *वरिष्ठ साहित्यकार शीलेंद्र वशिष्ठ* ने लिखा, ‘वह साधक कवयित्री थीं। सबको बहुत ही आदर और सम्मान देती थीं। उनकी कविताओं में गहरी संवेदनाएँ मुखर होती हैं।’ *डॉ. शशि तिवारी* ने लिखा, ‘बहुत ही दुखद। आदरणीय सत्या जी ने मुझे सदा बहुत प्यार दिया।’
*डॉ. नीलम भटनागर* ने लिखा, ‘स्नेही साहित्यकार सत्या सक्सेना जी का जाना हिंदी साहित्य जगत की अपूरणीय क्षति है।’ *डॉ. शशि गुप्ता* ने लिखा, ‘आगरा के साहित्यकाश से एक तारे ने हम सबसे विदाई ले ली…’
*पंडित महेश चंद्र शर्मा ‘गोपाली’* ने लिखा, ‘ बहुत दुःखद समाचार है ये। मैं आज सुबह ही उनकी एक गजल पढ़ रहा था.. जिंदगी एक फर्ज है, इसको निभाते जाईये। जिंदगी एक कर्ज है, इसको चुकाते जाईये। जिंदगी है दर्द तो दिल में छुपाना सीखिये। आँसुओं को पीजिये और मुस्कुराते जाईये.. विनम्र श्रद्धांजली सत्या जी, आप सदैव हमारे दिलों में रहेंगी।’
*वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यसेवी आदर्श नंदन गुप्त* ने लिखा, ‘एक शांत स्वभाव की संत जैसी साहित्य साधिका, शांति के साथ शांत हो गईं।’ *डॉ. केशव शर्मा* ने लिखा, ‘आदरणीय सत्या जी बहुत सहृदय महिला थीं।’ *सुनीत गोस्वामी* ने लिखा, ‘यह वाकई दुख देने वाली घटना है। साहित्यकार का चले जाना समाज को बहुत खाली कर जाता है।’
*उत्तर प्रदेश महिला आयोग की पूर्व सदस्य रोली तिवारी मिश्रा* ने लिखा, ‘बेहद दुखद! बचपन में उनका काफी सान्निध्य प्राप्त हुआ..’ *रमा सिंह* लिखती हैं, ‘बहुत दुख हुआ सुनकर.. मुझ पर बहुत स्नेह था उनका…’
*इन्होंने भी जताई शोक संवेदना..*
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. कुसुम चतुर्वेदी, शांति नागर, डॉ. मधु भारद्वाज, डॉ. सुषमा सिंह, शलभ भारती, डॉ. राजकुमार रंजन, रिटायर्ड जज चंद्रभाल श्रीवास्तव, डॉ. ब्रज बिहारी बिरजू, दिनेश संन्यासी, डॉ. पुनीता पांडेय पचौरी, अमीर अहमद जाफरी, संजय गुप्त, वरिष्ठ पत्रकार आनंद शर्मा, डॉ. महेश धाकड़, सिद्धार्थ चतुर्वेदी, मंजुल मयंक, कन्हैयालाल अग्रवाल, राजकिशोर राजे, उर्मिला माधव, शशि सिंह, रीता शर्मा, सुनीता चौहान, नरेंद्र शर्मा नरेंद्र, डॉ. मधुरिमा शर्मा, डॉ. ज्योत्सना शर्मा, राज फौजदार, डॉ. अनिल उपाध्याय, डॉ. शिखरेश, अशोक अश्रु, डॉ. राघवेंद्र शर्मा, डॉ. राजीव शर्मा निस्पृह, नीरज जैन, डॉ. रुचि चतुर्वेदी, अंगद धारिया, नंद नंदन गर्ग, अंजू दयालानी, डॉ. कविता रायजादा, निशिराज, राजकुमार जैन, दुर्गेश पांडेय, सुधा वर्मा, डॉ. चेतना, संजीव गौतम सुधांशु, कमल आशिक, सुधांशु साहिल, शरद गुप्ता, पूनम जाकिर, श्रुति सिन्हा, नेहा अग्रवाल, वंदना चौहान, कामेश सनसनी, जय राम जय, यश चंद्रिका, रेखा गौतम, पदम गौतम, मानसिंह मनहर और ओशो सन्यासी सरला अग्रवाल और लता शर्मा ने भी गहरी शोक संवेदना व्यक्त की।
*साहसिक और मार्मिक रही लेखनी*
डॉ. श्रीमती सत्या सक्सेना जी ने कविता, कहानी, उपन्यास, संस्मरण और यात्रा वृतांत सहित साहित्य की कई महत्वपूर्ण विधाओं में साहसिक और मार्मिक लेखन किया। उनके नारी विषयक ज्वलंत मुद्दों पर आलेख और भावना प्रधान कविताएँ जिसने भी सुनीं या पढ़ीं, वह उनका मुरीद हो गया।
*दुनिया से रुखसत हो गए ‘जोगी प्यार के’*
प्रिय कवि मित्र संजीव गौतम सुधांशु, पुष्पेंद्र शरण पुष्प, कमल आशिक, सुधांशु साहिल और मुझे वह अपने बेटे के रूप में ही मानतीं और स्नेह करती थीं। वह प्रेम और करुणा की साक्षात मूर्ति थीं। उनकी वाणी से सदैव अमृत झरता था। बहुत ही मीठे स्वर में गाती थीं। हारमोनियम भी बड़े मनोयोग से बजाती थीं। उनके व्यक्तित्व और कृतित्व में अक्सर महादेवी, मीराबाई, अमृता प्रीतम और ओशो रजनीश झलकते थे। उनका अंदाज सूफियाना था। वह स्वयं को ‘प्यार का एक जोगी’ मानती थीं।
उम्र के इस दौर में भी अक्सर अस्वस्थ रहने के बावजूद वह प्रेम, करुणा और पुकार में आकंठ डूबे गीत लिखती और गुनगुनाती रहती थीं। उनकी बड़ी अभिलाषा थी कि उनके जीते जी ऐसे गीतों का संग्रह ‘जोगी प्यार के’ शीर्षक से प्रकाशित हो.. क्या कहें! क्या करें! उनकी यह अभिलाषा अधूरी ही रह गई.. दुनिया से रुखसत हो गए जोगी प्यार के…
*गीत वियोगी प्राणों का अभिनंदन है..*
माँ स्वरूप परम आदरणीय डॉ. सत्या जी से अक्सर हम अनुरोध करके उनके इस मार्मिक गीत को सुनते थे.. उनके दिव्य स्वर में ‘गीत वियोगी प्राणों का अभिनंदन है..’ गीत हमारे मन प्राणों में गहरे उतर जाता था।
हमें नहीं पता था कि एक दिन सचमुच ही उनके प्राण वियोगी हो जाएंगे और हम निष्प्राण से उनको याद करते रह जाएंगे…
अब मुझे फोन करके कौन कहेगा, बेटा ललित! तुम्हारी याद आ रही है। थोड़ी देर के लिए ही सही, पर आ जाओ..
आपकी बहुत याद आएगी माँ..
अंतिम प्रणाम..
प्रस्तुति
कुमार ललित
(उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा निराला पुरस्कार से सम्मानित कवि)


