शुक देव और परिक्षित के जन्म की कथा सुन भाव विभोर हुए श्रद्धालु, युवाचार्य अभिषेक ने बताया भागवत कथा श्रवण का महत्व
− दयालबाग स्थित श्रीबालाजी धाम आश्रम में हाे रही श्रीमद् भागवत कथा की अमृत वर्षा, सैंकड़ों श्रद्धालु ले रहे धर्म शिक्षा लाभ
− कथा के द्वितीय दिवस परीक्षित जन्म, कुन्ती स्तुति, भीष्म स्तुति और शुकदेव आगमन का हुआ प्रसंग
आगरा। भक्ति और ज्ञान की रसधारा का प्रवाह हो रहा है दयालबाग स्थित श्रीबालाजी धाम आश्रम में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा एवं फाल्गुन महोत्सव के अंतर्गत।
गुरुवार को कथा आयोजन के दूसरे दिन युवाचार्य अभिषेक भाई जी ने राजा परीक्षित जन्म, शुकदेव भगवान का आगमन, सृष्टि उत्पत्ती व शिव पार्वती विवाह की कथा सुनाई गई। मुख्य यजमान कुंती चौहान ने व्यास पूजन किया। अरविंद महाराज ने भागवत जी का पूजन किया।
कथा व्यास युवाचार्य अभिषेक भाइ जी ने कहा कि कलयुग के प्रभाव से राजा परीक्षित ने ऋषि श्रृंगी के गले में मरा हुआ सर्प डाल दिया था। ऋषि ने उन्हें श्राप दिया कि ठीक सातवें दिन सर्प के काटने से उनकी मृत्यु हो जाएगी। उसी श्राप के निवारण के लिए वेद व्यास द्वारा रचित भागवत कथा शुकदेव द्वारा श्रवण करवायी गयी। कथा श्रवण से राजा परिक्षित का उत्थान हुआा। राजा परीक्षित ने सात दिन भागवत कथा सुनकर जिस प्रकार अपनी आत्मा का उद्धार किया उसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति भागवत के महत्व को श्रवण कर समझना चाहिए। भागवत अमृत रूपी कलश है, जिसका रसपान करके व्यक्ति अपने जीवन को कृतार्थ कर सकता है। इसलिए जहां भी भागवत कथा होती है, वह स्थल स्वतः ही पवित्र हो जाता है। कथा व्यास ने ध्रुव चरित्र और सृष्टि रचना पर प्रकाश डालते हुए कहा कि, मनुष्य देह आत्मा को बार− बार नहीं मिलती। इस देह के धारण करने का ध्येय जानना अति आवश्यक है। पुनरपि जनम और पुनरपि मरण से मुक्ति का मार्ग ये देह ही दिला सकती है। किंतु मोह और माया में फंस कर जीवन मृत्यु के चक्र में आत्मा पड़ जाती है। कलयुग में दया धर्म भगवान का सुमिरन ही सारी योनियों को पार करता है। मनुष्य जीवन का महत्व समझते हुए भगवान की भक्ति में अधिक से अधिक समय देना चाहिए। उन्होंने कहा कि भगवान विष्णु ने पांचवा अवतार कपिल मुनि के रूप में लिया था। उन्होंने परीक्षित की उत्तरा के गर्भ में रक्षा प्रसंग पर कहा कि ईश्वर की शरण में आकर ही भक्त को कृपा की प्राप्ति होती है। जीव की करुण पुकार जब तक ईश्वर तक नहीं पहुंचती तब तक कृपा नहीं होती। इसके दो सबसे बड़े उदाहरण महाभारत के समय मिलते हैं। जब द्रौपदी की पुकार और उत्तरा की पुकार सुनकर श्रीकृष्ण ने उनकी रक्षा की थी। श्रीकृष्ण भक्तों की पुकार सुनते हैं अंतर सिर्फ इतना है कि आप उसे हक से पुकार रहे हैं या नहीं। अगर आप उन्हें पूरे भरोसे के साथ बुला रहे हैं तो वो कभी आपको निराश नहीं करेंगे। जब अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र उत्तरा के गर्भ पर चलाया तब वासुदेव श्रीकृष्ण के पास पहुंची और उनसे प्रार्थना की कि, हे वासुदेव, मैं बहुत पीड़ा में हूं, मेरी पीड़ा खत्म करिए और मेरे गर्भ में पल रहे बच्चे की रक्षा कीजिए। तब श्रीकृष्ण ने उत्तरा के श्वांस मार्ग से उसके गर्भ में प्रवेश किया उस बच्चे को जीवित किया। इस बच्चे का नाम परीक्षित था।
कथा के दौरान भक्तिमय भजनों की प्रस्तुतियों पर श्रद्धालु जमकर झूमे। अनूप अग्रवाल ने बताया कि आश्रम परिसर में प्रतिदिन कथा दोपहर 2 बजे से 5 बजे की जा रही है। इस अवसर पर अवधेश पचौरी, एएन रायजादा, राजकुमार, अशाेक सक्सेना, ललिता, नेहा, रेखा, सीमा, शशि, नम्रता, चित्रा, मृदुला, शालिनी आदि उपस्थित रहे।