बरेली जिले में बंदरों का आतंक लगातार बढ़ता जा रहा है। बीते दो सप्ताह में 50 से अधिक लोग बंदरों के हमलों में हुए घायल

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बरेली जिले में बंदरों का आतंक लगातार बढ़ता जा रहा है। बीते दो सप्ताह में 50 से अधिक लोग बंदरों के हमलों में घायल हो चुके हैं। बंदर न केवल लोगों को काट रहे हैं बल्कि बच्चों और बुजुर्गों को निशाना बनाकर गंभीर रूप से घायल कर रहे हैं। इसके बावजूद नगर निगम की ओर से बंदर पकड़ने के अभियान केवल कागजों तक ही सीमित रह गए हैं। नगर निगम द्वारा कई बार निजी एजेंसियों को बंदर पकड़ने का ठेका दिया गया, लेकिन धरातल पर इन प्रयासों का कोई ठोस असर नजर नहीं आया।

 

ताजा मामला थाना भमोरा क्षेत्र के गांव तख्तपुर का है, जहां सोमवार सुबह एक दर्दनाक घटना सामने आई। गांव के एक मकान की छत पर कुछ बच्चे खेल रहे थे, तभी अचानक बंदरों का झुंड वहां आ गया। बंदरों ने बच्चों की ओर झपट्टा मारा, जिससे घबराकर बच्चे इधर-उधर भागने लगे। इसी अफरा-तफरी में दो वर्षीय विराज का संतुलन बिगड़ गया और वह छत से नीचे गिर गया।

 

गिरने के कारण विराज को सिर में गंभीर चोटें आईं। परिजन तुरंत उसे लेकर भमोरा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचे, जहां प्राथमिक उपचार के बाद डॉक्टरों ने उसकी गंभीर हालत को देखते हुए बरेली जिला अस्पताल रेफर कर दिया। फिलहाल विराज का इलाज जिला अस्पताल में चल रहा है, और उसकी हालत गंभीर बनी हुई है।

 

पीड़ित परिजनों ने बताया कि सुबह विराज अन्य बच्चों के साथ छत पर खेल रहा था, तभी अचानक बंदर आ गए और हमला कर दिया। बंदरों की संख्या अधिक थी और उन्होंने सीधे बच्चों को निशाना बनाया। बच्चों की चीख-पुकार सुनकर परिजन दौड़े, लेकिन तब तक विराज नीचे गिर चुका था।

 

गांव के लोगों में इस घटना के बाद आक्रोश और भय दोनों का माहौल है। लोगों का कहना है कि प्रशासन और नगर निगम द्वारा कई बार शिकायतों के बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। बंदरों का आतंक दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है, लेकिन जिम्मेदार विभाग केवल खानापूर्ति करने में लगे हुए हैं। ग्रामीणों ने मांग की है कि तत्काल प्रभाव से बंदर पकड़ने के लिए एक प्रभावी अभियान चलाया जाए, ताकि भविष्य में इस तरह की दर्दनाक घटनाएं न हों।

 

बरेली जिले के कई अन्य इलाकों से भी बंदरों के हमले की घटनाएं सामने आ रही हैं, जिससे पूरे जिले में दहशत का माहौल बना हुआ है। लोगों को न तो घरों की छत पर चढ़ने की हिम्मत हो रही है और न ही बच्चों को बाहर भेजने की। अगर जल्द ही कोई सख्त कदम नहीं उठाया गया, तो यह समस्या और भी भयावह रूप ले सकती है।